राजभाषा की पुकार*
जब घुटनों के बल चलता था
किस्से,लोरी में पलता था
तब तेरी पीठ बैठकर मैं
ता ता थैया कहता था
तेरे आँचल के छोर से मैं
बंधन ममता की गहता था
ऐ हिन्द ! की बेटी तुमको मैं
अपनी भाषा कहता था
हिन्दू,हिन्दी, हिंदुस्तान की
जब जब भी चर्चे होते थे
दिल भर आता,सांसे बोझिल
कंठों में आहत बोली थी
कैसे मैं तुझे पुकारूंगा,सिर्फ
राज-भाषा कह के गुहारूँगा
ऐ नीति नियंता ! गौर करो
अपनी भाषा को न दूर करो
अंग्रेजी,उर्दू,अरबी,जर्मन
सबका तुम प्रयोग करो
पर अपनी भाषा हिन्दी को
मातृ -भूमि की बिंदी को
सिर्फ औपचारिकता का दे विराम
अपने कर्तव्य का न इति श्री करो
संविधान के बाहर भी
अनुसूची की सूची से ऊपर
तुम इसको मातृवत प्रेम करो
सिर्फ राजभाषा का सांत्वना दे
इसे राष्ट्रभाषा से न महरूम करो
--- राघवेश पति त्रिपाठी,शिक्षक एवं स्वतंत्र लेखक ,महराजगंज, उत्तर प्रदेश
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